परिचय: मध्य प्रदेश के लिए ऐतिहासिक वन्यजीव संरक्षण उपलब्धि
मध्य प्रदेश ने “टाइगर स्टेट” के रूप में अपनी स्थिति को और मजबूत किया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने हाल ही में राज्य के 70वें स्थापना दिवस समारोह के अवसर पर ओंकारेश्वर वन्यजीव अभयारण्य की घोषणा की, जो खंडवा और देवास जिलों में फैले लगभग 611-614 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। यह घोषणा न केवल वन्यजीव संरक्षण बल्कि क्षेत्रीय पर्यटन और पारिस्थितिक संरक्षण के लिए भी एक परिवर्तनकारी कदम है।
इस विकास की सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि इंदौर भारत का पहला शहर बनने जा रहा है जिसके आसपास 150 किलोमीटर के दायरे में चार वन्यजीव अभयारण्य होंगे। इससे इंदौर को न केवल व्यापारिक राजधानी के रूप में बल्कि वन्यजीव पर्यटन केंद्र के रूप में भी पहचान मिलेगी — यह एक ऐसा मॉडल बनेगा जिसे अन्य भारतीय शहर भी अपना सकते हैं।
चार अभयारण्य: इंदौर के चारों ओर एक “वन्यजीव संरक्षण गलियारा”
1. रालामंडल वन्यजीव अभयारण्य
स्थापना वर्ष: 1989
स्थान: इंदौर शहर से लगभग 12 किमी दूर
क्षेत्रफल: 5 वर्ग किलोमीटर
इतिहास: पहले होलकर राजघराने का शिकार स्थल था।
मुख्य विशेषताएँ:
वन्यजीव: तेंदुआ, काला हिरन, चीतल, नीलगाय, लकड़बग्घा, भौंकने वाला हिरन, मोर, पाम सिवेट, साही, खरगोश
वनस्पति: सागौन, साजा, चंदन, यूकेलिप्टस, बबूल, बाँस
संरक्षण उपाय: लगभग 8,000–10,000 पेड़ों की “ग्रीन वॉल” बनाई गई है ताकि सड़क के शोर और प्रदूषण से जानवरों की सुरक्षा हो सके।
पर्यटन: ट्रेकिंग, ऊँट की सवारी, विश्राम गृह और सफारी सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
2. खेयोनी (खिवनी) वन्यजीव अभयारण्य
स्थान: देवास जिले के कन्नौद तहसील में, इंदौर से लगभग 120–125 किमी दूर
क्षेत्रफल: 132 वर्ग किलोमीटर
मुख्य विशेषताएँ:
वन्यजीव: बाघ (रतापानी से प्रवासित), तेंदुए, जंगली बिल्ली, सियार, लकड़बग्घा, नीलगाय, काला हिरन, चिंकारा, सांभर, जंगली सूअर, चौसिंगा, पाम सिवेट
पक्षी विविधता: लगभग 125 प्रजातियाँ, जिनमें राज्य पक्षी “भारतीय स्वर्ग पक्षी” शामिल है।
कनेक्टिविटी: रतापानी टाइगर रिजर्व से जुड़ा हुआ वन्यजीव गलियारा।
पर्यटन: वन विश्राम गृह उपलब्ध हैं; निजी वाहन या गाइडेड सफारी दोनों विकल्प मौजूद हैं।
3. ओंकारेश्वर वन्यजीव अभयारण्य (नव घोषित)
राज्य का 27वाँ अभयारण्य, और संभावित रूप से 11वाँ टाइगर रिजर्व।
स्थान: खंडवा और देवास जिले
क्षेत्रफल: 611–614 वर्ग किमी
मुख्य विशेषताएँ:
बाघों की संख्या: लगभग 50 से अधिक बाघ, जो कान्हा, बांधवगढ़ और पेंच जैसे भरे हुए रिजर्वों का दबाव कम करेंगे।
भौगोलिक स्थिति: नर्मदा घाटी में, प्रसिद्ध ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के निकट (इंदौर से लगभग 77 किमी)।
पर्यावरणीय महत्व: 1980 के दशक में इंदिरा सागर और सरदार सरोवर बांधों से नष्ट हुई वन भूमि के बदले में यह संरक्षित क्षेत्र बनाया गया है — 40 साल पुराना पर्यावरणीय वादा पूरा हुआ।
भविष्य की योजनाएँ: असम से गैंडे और गौर (भारतीय बाइसन) लाए जाएँगे; किंग कोबरा भी लाने की योजना है।
संरचना: 73 वन भवन, 12 वॉचटावर, 88 कर्मचारी जिनमें बीट गार्ड और रेंज अधिकारी शामिल हैं।
4. देवी अहिल्याबाई अभयारण्य (प्रस्तावित)
नामकरण: देवी अहिल्याबाई होलकर के नाम पर
स्थान: तिलोर (छोरल) से लेकर बड़वाह के बीच का वन क्षेत्र
क्षेत्रफल: लगभग 6,000–6,700 हेक्टेयर
वर्तमान स्थिति:
प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) से स्वीकृति प्राप्त
राज्य वन्यजीव बोर्ड की अंतिम स्वीकृति और सर्वोच्च न्यायालय की सशक्त समिति से अधिसूचना की प्रतीक्षा
वन्यजीव उपस्थिति:
बाघ: 5–7
तेंदुए: लगभग 70
शाकाहारी: सैकड़ों चीतल, सांभर, कृष्णमृग, नीलगाय, जंगली सूअर, चिंकारा
अन्य: भौंकने वाला हिरन, लोमड़ी, लकड़बग्घा, मोर, खरगोश
वन्यजीव पर्यटन क्षमता: आर्थिक और पारिस्थितिक लाभ
पर्यटन विकास
चार अभयारण्यों का एक साथ होना इंदौर को एक “वन्यजीव पर्यटन बेसकैंप” बना देगा।
संभावित लाभ:
ईको-टूरिज्म: गाँव पर्यटन, रिसॉर्ट, होटल, सफारी लॉज का विकास
स्थानीय रोजगार: गाइड, होटल स्टाफ, हस्तशिल्प विक्रेता
राजस्व: प्रवेश शुल्क, आवास और सफारी बुकिंग से आय
अंतरराष्ट्रीय आकर्षण: विदेश से आने वाले पर्यटकों की संख्या 5,000–6,000 से कहीं अधिक होने की संभावना
इंदौर से अतिरिक्त वन्यजीव पहुँच
गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य: इंदौर से 255 किमी दूर, भारत में चीता पुनर्वास का दूसरा घर (कूनो के बाद)
रतापानी टाइगर रिजर्व: हाल ही में मध्य प्रदेश का 8वाँ टाइगर रिजर्व घोषित
इंदौर अब “सेंट्रल वाइल्डलाइफ टूरिज्म सर्किट” का केंद्र बन गया है।
संरक्षण महत्व: मध्य प्रदेश की पारिस्थितिक विरासत की रक्षा
बाघ जनसंख्या प्रबंधन
टाइगर जनगणना 2022 के अनुसार मध्य प्रदेश में 785 बाघ हैं — भारत में सबसे अधिक।
इनमें लगभग 30% संरक्षित क्षेत्रों के बाहर घूमते हैं, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ता है।
ओंकारेश्वर अभयारण्य के लाभ:
अतिरिक्त आवास उपलब्ध कराना
वन्यजीव गलियारे बनाना
मानव-वन्यजीव संघर्ष कम करना
जैव विविधता संरक्षण
इन चारों अभयारण्यों में विभिन्न पारिस्थितिक तंत्र मौजूद हैं:
शुष्क पर्णपाती वन (सागौन, तेंदू, बाँस)
नदी तटीय पारिस्थितिकी (नर्मदा, चंबल)
घासभूमियाँ
चट्टानी भू-आकृतियाँ
यह विविधता आनुवंशिक स्थायित्व और पर्यावरणीय संतुलन सुनिश्चित करती है।
प्रतिपूरक वनीकरण की पूर्ति
1980 के दशक में जब इंदिरा सागर और सरदार सरोवर परियोजनाओं के कारण 41,111 हेक्टेयर वन भूमि नष्ट हुई थी, तब शर्त रखी गई थी कि उसके बदले अभयारण्य बनाए जाएँगे।
ओंकारेश्वर अभयारण्य की अधिसूचना इस वादे की पूर्ति है — 40 साल बाद।
यह उदाहरण है:
सरकारी जवाबदेही का
पारिस्थितिक ऋण की भरपाई का
पूरे भारत में अनुकरणीय मॉडल का
स्थानीय समुदायों पर प्रभाव
रोजगार के अवसर:
प्रत्यक्ष: वन गार्ड, सफारी चालक, पशु चिकित्सक
अप्रत्यक्ष: होटल स्टाफ, यातायात सेवाएँ, हस्तशिल्प विक्रेता
उद्यमिता: ईको-लॉज, होमस्टे, एडवेंचर टूरिज्म
बुनियादी ढाँचा विकास:
सड़कें और पहुँच मार्ग
पर्यटक सूचना केंद्र
आवास (बजट से लेकर लग्ज़री तक)
चिकित्सा व संचार सुविधाएँ
सामुदायिक भागीदारी:
सीमा निर्धारण से संघर्ष कम
पर्यटन आय का हिस्सा ग्राम विकास में
जागरूकता कार्यक्रम
मध्य प्रदेश की वन्यजीव नेतृत्व भूमिका
भारत का टाइगर स्टेट:
9 टाइगर रिजर्व: कान्हा, पेंच, बांधवगढ़, सतपुड़ा, पन्ना, संजय-दुबरी, वीरांगना दुर्गावती, रतापानी, माधव
27 वन्यजीव अभयारण्य
12 राष्ट्रीय उद्यान
प्रोजेक्ट चीता:
1952 में भारत से लुप्त हुई प्रजाति की पुनर्स्थापना
नामीबिया व दक्षिण अफ्रीका से चीतों का स्थानांतरण
गांधी सागर में विस्तार
नौरेदेही में योजना
सफल प्रजनन — 19 शावक जन्मे
भारत अब उन कुछ देशों में शामिल है जिन्होंने लुप्त प्रजातियों की पुनर्वापसी की है।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की प्रमुख पहलें
विजन 2047: पर्यावरण और विकास का एकीकरण
नई प्रजातियाँ: ओंकारेश्वर में गैंडा और गौर लाने की योजना
हेलीकॉप्टर टूरिज्म: वन्यजीव स्थलों को जोड़ने के लिए
नर्मदा में मगरमच्छ संरक्षण अभियान
UPSC परीक्षा हेतु महत्वपूर्ण बिंदु
स्थिर भाग (Prelims & Mains):
भूगोल: ओंकारेश्वर (खंडवा–देवास), रालामंडल (इंदौर), खेयोनी (देवास)
नदियाँ: नर्मदा (ओंकारेश्वर), चंबल (गांधी सागर)
संवैधानिक अनुच्छेद: अनुच्छेद 48A, 51A(g)
कानून: वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986
आर्थिक दृष्टिकोण:
वन्यजीव पर्यटन से रोजगार और राजस्व
पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं का आर्थिक मूल्यांकन
वर्तमान घटनाक्रम:
ओंकारेश्वर — राज्य का 27वाँ अभयारण्य (नवंबर 2025)
माधव राष्ट्रीय उद्यान — 9वाँ टाइगर रिजर्व (2024)
रतापानी टाइगर रिजर्व अधिसूचना (2024)
गांधी सागर में चीता पुनर्वास (अप्रैल 2025)
निबंध और नैतिकता के लिए संभावित विषय:
“भारत में विकास और संरक्षण का संतुलन”
“वन्यजीव पर्यटन: संरक्षण और ग्रामीण विकास का माध्यम”
“बाघ संरक्षण से मिली सीख”
“समुदाय आधारित संरक्षण की आवश्यकता”
नैतिक अध्ययन केस:
बांध परियोजनाओं के बाद प्रतिपूरक संरक्षण (न्याय बनाम पर्यावरण उत्तरदायित्व)
मानव-वन्यजीव संघर्ष (अधिकार बनाम संरक्षण)
अभयारण्यों में पर्यटन (आर्थिक लाभ बनाम पारिस्थितिक संतुलन)
निष्कर्ष: संरक्षण-आधारित विकास का नया अध्याय
ओंकारेश्वर अभयारण्य की घोषणा और देवी अहिल्याबाई अभयारण्य का प्रस्ताव न केवल नए क्षेत्रों का निर्माण है, बल्कि यह दिखाता है कि संरक्षण, पर्यटन और ग्रामीण विकास एक साथ चल सकते हैं।
इंदौर की यह पहचान — 150 किमी के भीतर चार अभयारण्य — भारत के शहरी केंद्रों के लिए एक आदर्श मॉडल है।
यह दर्शाता है कि शहरीकरण और पर्यावरण संरक्षण विरोधी नहीं, बल्कि पूरक शक्तियाँ हैं।
यूपीएससी दृष्टिकोण से, यह विषय भूगोल, शासन, पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और नैतिकता — सभी पेपर्स में प्रासंगिक उदाहरण प्रदान करता है।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के शब्दों में:
“यह केवल एक अभयारण्य नहीं, बल्कि प्रकृति की गोद में हमारे 27वें रत्न का उदय है।”
यह भाव भारत के आधुनिक संरक्षण दृष्टिकोण को दर्शाता है — प्रकृति की रक्षा के साथ सतत विकास का संकल्प।
दैनिक करंट अफेयर्स, अध्ययन सामग्री और मार्गदर्शन के लिए:
👉 www.atharvaexamwise.com