चावल की खेती: जलवायु के लिए बढ़ती चिंता
दुनिया की अरबों आबादी के भोजन का आधार — चावल, अब जलवायु परिवर्तन की बड़ी वजह बन रहा है। हाल के अध्ययनों में पाया गया है कि पारंपरिक पानी से भरे खेतों में की जाने वाली धान की खेती से भारी मात्रा में मीथेन गैस निकलती है, जो कार्बन डाइऑक्साइड से लगभग 25 गुना अधिक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है।
2022 में अकेले चावल की खेती से लगभग 3.9 करोड़ (39 मिलियन) मीट्रिक टन मीथेन उत्सर्जित हुई — जो वैश्विक तापमान में तेज वृद्धि का एक प्रमुख कारण है। यही कारण है कि अब चावल की खेती को ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रमुख कारकों में से एक माना जा रहा है।
मुख्य तथ्य
मीथेन उत्सर्जन: धान के खेतों से हर वर्ष लगभग 60 मिलियन टन मीथेन निकलती है — यह मानव-जनित मीथेन का लगभग 10–12% है।
2022 का आँकड़ा: केवल वर्ष 2022 में चावल की खेती से 3.9 करोड़ टन मीथेन निकली।
मुख्य गैस: धान के खेतों से निकलने वाली ग्रीनहाउस गैसों में लगभग 94% हिस्सा केवल मीथेन का होता है।
भारत का लक्ष्य: Carbon Credit Trading Scheme 2025 जैसे कदमों का उद्देश्य कृषि से होने वाले उत्सर्जन को कम करना है।
धान के खेतों से मीथेन कैसे बनती है?
चावल की खेती आमतौर पर उन खेतों में होती है जो लंबे समय तक पानी में डूबे रहते हैं। लगातार जलभराव से मिट्टी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और वह “एनेरोबिक” (ऑक्सीजन-रहित) वातावरण बना लेती है।
ऐसे वातावरण में मीथेन-उत्पादक जीवाणु (Methanogenic Bacteria) सक्रिय हो जाते हैं। ये मिट्टी में मौजूद सड़े-गले जैविक पदार्थों को तोड़ते समय मीथेन गैस छोड़ते हैं।
जितना अधिक समय खेत डूबा रहेगा, उतनी ही अधिक मात्रा में मीथेन उत्पन्न होगी।
सारांश: पानी से भरे धान के खेत वास्तव में “मीथेन फैक्ट्री” बन जाते हैं।
चावल एकमात्र प्रमुख फसल है जो इतने लंबे समय तक जलभराव में उगाई जाती है, इसलिए इसकी ग्रीनहाउस गैस इंटेंसिटी अन्य फसलों की तुलना में सबसे अधिक होती है।
क्लाइमेट-स्मार्ट राइस: उत्सर्जन कम करने के उपाय
विशेषज्ञों का मानना है कि खेती की पद्धति में कुछ बदलाव कर के मीथेन उत्सर्जन को काफी हद तक घटाया जा सकता है — उपज पर असर डाले बिना। इसे ही “क्लाइमेट-स्मार्ट राइस (Climate-Smart Rice)” कहा जाता है।
1️⃣ Alternate Wetting and Drying (AWD) तकनीक
खेत को पूरे सीजन में लगातार डुबोकर रखने की बजाय बीच-बीच में सुखाना।
इससे मिट्टी में ऑक्सीजन पहुँचती है और मीथेन-उत्पादक बैक्टीरिया की क्रिया रुक जाती है।
यह तकनीक 30–70% तक मीथेन उत्सर्जन घटाती है और लगभग 30% पानी की बचत भी करती है।
2️⃣ सही किस्म का चयन
कम अवधि वाली, उच्च उपज देने वाली किस्में कम समय तक जलभराव मांगती हैं।
वैज्ञानिक अब ऐसी लो-मीथेन वैराइटीज़ तैयार कर रहे हैं जो 40% कम पानी में समान उपज देती हैं।
(विस्तार से पढ़ें — Atharva Examwise: Genome-Edited Rice Varieties Revolutionize Indian Agriculture)
3️⃣ जैविक कचरे का प्रबंधन
धान की फसल के बाद बचने वाले पुआल (straw) और हस्क को खेत में सड़ने देने के बजाय बाहर निकालकर कम्पोस्ट या बायोचार बनाना चाहिए।
चीन के एक अध्ययन में पाया गया कि राइस-स्ट्रॉ बायोचार के प्रयोग से मीथेन उत्सर्जन में 86% की कमी आई।
4️⃣ उर्वरक का संतुलित उपयोग
नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों की अधिकता से नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) बढ़ता है।
सटीक मात्रा, स्लो-रिलीज फर्टिलाइज़र, या वैकल्पिक उर्वरक अपनाने से मीथेन उत्सर्जन में 50% तक कमी लाई जा सकती है।
इन सभी उपायों को मिलाकर क्लाइमेट-स्मार्ट राइस फार्मिंग कहा जाता है। भारत, चीन, वियतनाम जैसे देश इसे बड़े पैमाने पर अपना रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय संगठन जैसे FAO और IRRI भी किसानों को इस दिशा में प्रशिक्षण दे रहे हैं।
COP26 में 100 से अधिक देशों ने Global Methane Pledge 2021 पर हस्ताक्षर किए — 2030 तक मीथेन उत्सर्जन 30% घटाने का लक्ष्य।
इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए चावल की खेती में परिवर्तन अनिवार्य है।
Why this matters for your exam preparation | परीक्षा के लिए महत्व
UPSC Prelims में प्रश्न आ सकते हैं:
“धान के खेतों से कौन-सी गैस उत्सर्जित होती है?”
“क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर क्या है?”
“मीथेन CO₂ से कितनी गुना अधिक प्रभावी ग्रीनहाउस गैस है?”
Mains (GS Paper III: Environment & Agriculture) में उत्तर लिखते समय आप उदाहरण दे सकते हैं —
Alternate Wetting and Drying तकनीक
Climate-Smart Rice Initiatives
India’s Carbon Credit Trading Scheme 2025
Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojana, National Mission for Sustainable Agriculture
यह विषय पर्यावरण, कृषि और सस्टेनेबल डेवलपमेंट को जोड़ता है — UPSC Essay और Interview में भी अत्यंत प्रासंगिक है।
इस विषय की समझ से आप उत्तरों में डेटा-सपोर्टेड एनालिसिस, समाधान-उन्मुख अपरोच और नीतिगत दृष्टिकोण प्रस्तुत कर पाएँगे।