परिचय भारत में निर्वाचन क्षेत्र परिसीमन (Delimitation) 2026 को लेकर बहस तेज हो गई है। कुछ विशेषज्ञ संसद में सीटों को स्थिर रखते हुए विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ाने का सुझाव दे रहे हैं, ताकि जनसंख्या वृद्धि को संतुलित किया जा सके। हालांकि, जम्मू-कश्मीर (2022) और असम (2023) में हुए परिसीमन ने कई चिंताएं पैदा कर दी हैं, जो 2026 में संभावित समस्याओं की ओर इशारा कर रही हैं।
क्या है परिसीमन?
परिसीमन का अर्थ है चुनावी क्षेत्रों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण ताकि जनसंख्या के अनुपात में संतुलित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके। लेकिन जब यह निष्पक्ष रूप से नहीं किया जाता, तो इससे राजनीतिक ध्रुवीकरण और सांप्रदायिक गुटबाजी को बढ़ावा मिल सकता है।
परिसीमन से जुड़ी प्रमुख समस्याएँ
1. राज्यों के बीच सत्ता असंतुलन
दक्षिणी राज्यों को डर है कि संसदीय सीटों के पुनर्वितरण से उत्तर भारत की शक्ति में अत्यधिक वृद्धि हो सकती है।
एक सुझाव यह भी है कि राज्यसभा की सीटों का संतुलित पुनर्वितरण करके क्षेत्रीय असंतुलन को कम किया जाए।
2. जम्मू-कश्मीर में सांप्रदायिक आधार पर परिसीमन
2022 के जम्मू-कश्मीर परिसीमन में जम्मू को 6 नई सीटें और कश्मीर को केवल 1 सीट दी गई।
यह परिसीमन हिंदू बहुल क्षेत्रों को प्राथमिकता देता दिखा, जिससे चुनावी संतुलन प्रभावित हुआ।
उदाहरण: मुस्लिम बहुल किश्तवाड़ को हिंदू बहुल क्षेत्र में शामिल कर दिया गया।
3. असम में परिसीमन की राजनीति
2023 के असम परिसीमन में चार जिलों को फिर से मिलाया गया, जिससे 10 मुस्लिम बहुल सीटें समाप्त हो गईं।
इससे हिंदू और आदिवासी बहुल सीटों की संख्या बढ़ी, जिससे चुनावी संतुलन प्रभावित हुआ।
4. असमान जनसंख्या प्रतिनिधित्व
जम्मू-कश्मीर और असम में कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में अत्यधिक जनसंख्या भिन्नता पाई गई।
उदाहरण:
वैष्णो देवी क्षेत्र (50,000 मतदाता) बनाम डूरू क्षेत्र (1.92 लाख मतदाता)।
इससे चुनावी वोटों का असंतुलन उत्पन्न हुआ।
सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और राजनीतिक प्रभाव
2026 का परिसीमन क्षेत्रीय और धार्मिक विभाजन को बढ़ा सकता है:
दक्षिणी राज्यों की शक्ति कम हो सकती है, जिससे उत्तर-दक्षिण राजनीतिक असंतुलन बढ़ेगा।
चुनावी क्षेत्रों के सांप्रदायिक विभाजन से मतदाता अधिक ध्रुवीकृत हो सकते हैं।
जम्मू-कश्मीर और असम में परिसीमन के बाद बीजेपी को बढ़त मिली, जिससे इसकी राजनीतिक रणनीति पर सवाल उठे।
समाधान और आवश्यक सुधार
संतुलित और निष्पक्ष परिसीमन सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाने चाहिए:
1. क्षेत्रीय परिषदों और अंतर-राज्यीय परिषद को सक्रिय करना
इन परिषदों को राज्यों की समस्याओं को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।
अंतर-राज्यीय परिषद, जो 2016 से निष्क्रिय है, उसे पुनर्जीवित किया जाना चाहिए।
2. पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करना
चुनाव आयोग (Election Commission of India - ECI) को इस प्रक्रिया की निगरानी करनी चाहिए।
न्यायिक समीक्षा तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए ताकि पक्षपातपूर्ण निर्णयों को चुनौती दी जा सके।
3. समान जनसंख्या प्रतिनिधित्व
राज्यसभा सीटों के पुनर्वितरण से क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखा जा सकता है।
निर्वाचन क्षेत्रों के लिए जनसंख्या न्यूनतम और अधिकतम सीमा तय होनी चाहिए।
निष्कर्ष
2026 का परिसीमन अगर राजनीतिक और सांप्रदायिक पूर्वाग्रहों से प्रभावित हुआ, तो यह भारत के लोकतंत्र के लिए खतरा बन सकता है। जम्मू-कश्मीर और असम के सबक बताते हैं कि अगर परिसीमन निष्पक्ष नहीं हुआ, तो यह विकासशील और विकसित राज्यों के बीच असमानता बढ़ाएगा।
सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि परिसीमन प्रक्रिया निष्पक्ष, पारदर्शी और संतुलित हो, ताकि राष्ट्रीय एकता और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा की जा सके।
"परिसीमन 2026: जम्मू-कश्मीर और असम से सीख लेते हुए भारत में निष्पक्ष निर्वाचन क्षेत्र परिसीमन सुनिश्चित करने के उपाय। जानिए विस्तार से।"
बाहरी लिंकिंग
भारतीय चुनाव आयोग - आधिकारिक वेबसाइट
अंतर-राज्यीय परिषद - भारत सरकार
इन सुधारों को लागू करके भारत के लोकतंत्र को पक्षपात और विभाजनकारी प्रभावों से बचाया जा सकता है, जिससे निष्पक्ष और प्रभावी चुनावी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके।
By Team Atharva Examwise #atharvaexamwise