परिचय
Kohbar चित्रकारी झारखंड और बिहार की एक प्राचीन लोककला है जो विवाह संस्कार का अभिन्न अंग है। यह कला न केवल हमारी सांस्कृतिक परंपराओं को जीवित रखती है बल्कि भारत की समृद्ध कलात्मक विरासत का भी प्रतीक है। यह कला विशेष रूप से झारखंड के हजारीबाग जिले में प्रचलित है और 2020 में इसे Geographical Indication (GI) Tag प्राप्त हुआ है।
Kohbar कला की मुख्य विशेषताएं
प्राकृतिक रंगों का प्रयोग
Kohbar चित्रकारी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें पूर्णतः प्राकृतिक रंगों का उपयोग होता है:
लाल रंग: मिट्टी और वृक्षों की छाल से तैयार किया जाता है
पीला रंग: हल्दी और सरसों से बनाया जाता है
सफेद रंग: दूधिया मिट्टी से प्राप्त होता है
काला रंग: भेलवा पेड़ के बीज पीसकर तैयार किया जाता है
प्राकृतिक ब्रश और उपकरण
इस कला में प्राकृतिक ब्रश का प्रयोग होता है:
उंगलियों का प्रत्यक्ष उपयोग
लकड़ी की कंघी (अब प्लास्टिक की भी)
दातुन से चित्रांकन
बांस की डंडियों का प्रयोग
विवाह परंपराओं में महत्व
कोहबर गृह की सज्जा
विवाह के समय घर के किसी एक कमरे की पूर्वी दीवार पर कोहबर चित्रकारी की जाती है। यह कमरा वही होता है जहां नवविवाहित जोड़ा अपने वैवाहिक जीवन की शुरुआत करता है। चित्रांकन में निम्नलिखित आकृतियां प्रमुख हैं:
मोर के चित्र - प्रेम और सौंदर्य के प्रतीक
पत्ते और फूल - प्रकृति से तालमेल
ज्यामितीय पैटर्न - संतुलन और सामंजस्य
काले-सफेद बेल-बूटे - शुभता के प्रतीक
कोहबर पूजन की परंपरा
वर और वधू दोनों पक्षों के घर में कोहबर पूजन का कार्यक्रम होता है। इस अवसर पर कोहबर गीत भी गाए जाते हैं जिनमें वर-वधू के बीच प्रेम और आत्मीयता बढ़ाने की भावना व्यक्त होती है।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व
GI Tag की प्राप्ति
2020 में झारखंड की Sohrai-Khovar Painting को Geographical Indication Tag प्रदान किया गया। यह टैग Sohrai Kala Mahila Vikas Sahyog Samiti Limited के आवेदन पर दिया गया था।
आधुनिक संदर्भ में विकास
हाल के वर्षों में इस कला ने नए आयाम प्राप्त किए हैं:
बिरसा मुंडा एयरपोर्ट, रांची की दीवारों पर सज्जा
हजारीबाग और टाटानगर रेलवे स्टेशन की सजावट
सार्वजनिक स्थानों पर इस कला का प्रदर्शन
जनजातीय समुदायों की भूमिका
यह कला मुख्यतः झारखंड की महिलाओं द्वारा अभ्यास की जाती है। निम्नलिखित जनजातीय समुदायों की महिलाएं इस कला में निपुण हैं:
कुर्मी जनजाति
संथाल समुदाय
मुंडा जनजाति
ओरांव समुदाय
अगरिया और घटवाल जनजाति
आधुनिक चुनौतियां
परंपरागत माध्यमों का ह्रास
मिट्टी की दीवारों का स्थान ईंट-सीमेंट की दीवारों द्वारा लिया जाना इस कला के लिए चुनौती बन गया है। शहरीकरण और आधुनिकीकरण के कारण युवा पीढ़ी इस कला से दूर होती जा रही है।
संरक्षण के प्रयास
2025 के कला उत्सव में राष्ट्रपति भवन में झारखंड के कलाकारों ने इस कला का प्रदर्शन किया। यह 14-24 जुलाई 2025 तक आयोजित हुआ था और भारत की जीवंत कला परंपराओं को बढ़ावा देने का उद्देश्य था।
Why this matters for your exam preparation
UPSC और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए Kohbar चित्रकारी का महत्व:
Art & Culture Section के लिए महत्वपूर्ण:
भारतीय लोक कला और जनजातीय परंपराओं की समझ
GI Tag से संबंधित प्रश्न अक्सर पूछे जाते हैं
Cultural Heritage और Traditional Knowledge पर आधारित प्रश्न
Current Affairs की दृष्टि से:
2020 में GI Tag प्राप्ति - महत्वपूर्ण तथ्य
2025 में राष्ट्रपति भवन कला उत्सव में प्रदर्शन
झारखंड की सांस्कृतिक नीतियों से जुड़े प्रश्न
Static GK के रूप में:
झारखंड की विशिष्ट कलाएं
प्राकृतिक रंगों का उपयोग करने वाली भारतीय कलाएं
विवाह परंपराओं से जुड़ी सांस्कृतिक प्रथाएं
यह विषय Paper-I (Prelims) और GS Paper-I (Mains) दोनों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारतीय संस्कृति, कला और सभ्यता के अंतर्गत आता है।