ममिता नृत्य: त्रिपुरा के रींग समुदाय का पारंपरिक फसल उत्सव | करेंट अफेयर्स 18 जुलाई 2025

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त्रिपुरा की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में ममिता नृत्य का महत्वपूर्ण स्थान है। इसे रींग (ब्रू) समुदाय की कोकबोरोक भाषा बोलने वाली महिलाएं, फसल कटाई के बाद 'ममिता उत्सव' के अवसर पर सामूहिक रूप से प्रस्तुत करती हैं। यह नृत्य प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के साथ-साथ सामुदायिक एकता और सांस्कृतिक संरक्षण का प्रतीक भी है।

ममिता नृत्य की प्रमुख विशेषताएं

प्रदर्शन शैली और स्वरूप

ममिता नृत्य मुख्य रूप से रींग समुदाय की महिलाओं द्वारा अक्टूबर–नवंबर में, फसल कटाई के एकदम बाद, ममिता उत्सव के अंतर्गत किया जाता है। महिलाएं समूह में गोल घेरा बनाकर तालबद्ध लय और पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन पर नृत्य करती हैं।

पारंपरिक वस्त्र और गहने

नृत्य करती महिलाएं रंगीन पारंपरिक वेशभूषा पहनती हैं, जिसमें मुख्यतः 'रिंगाई' (लुंगी जैसी पोशाक), ब्लाउज और पारंपरिक गहनों का समावेश होता है। पुरुष पारंपरिक वाद्य जैसे कि ढोल और बांसुरी बजाकर नृत्य को संगीतमय बनाते हैं।

रींग समुदाय: त्रिपुरा की दूसरी सबसे बड़ी आदिवासी जनजाति

जनसंख्या और भौगोलिक वितरण

2011 की जनगणना के अनुसार, त्रिपुरा की रींग समुदाय की आबादी लगभग 1,88,220 है, जो राज्य की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति है। यह समुदाय त्रिपुरा के अतिरिक्त असम और मिज़ोरम में भी निवास करता है।

भाषा और सांस्कृतिक पहचान

रींग लोग 'कौबरु' नामक कोकबोरोक की एक उपबोली बोलते हैं, जो तिब्बती-बर्मी भाषा परिवार का हिस्सा है। इस भाषा में कुकी भाषा का प्रभाव भी है। भारतीय संविधान के अनुसार, रींग समुदाय को 'विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह' (PVTG) की श्रेणी में रखा गया है।

ममिता उत्सव: धार्मिक और सामाजिक महत्व

प्रकृति को समर्पित धन्यवाद समारोह

ममिता उत्सव फसल के लिए देवी–देवताओं और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर है। इस दौरान मुख्यतः 'मैलुमा' और 'खुलुमा' नामक देवियों की पूजा होती है, जिन्हें धान, कपास व अन्य फसलों की संरक्षिका माना जाता है। यह उत्सव आमतौर पर दुर्गा पूजा या 'ओसा मुताई' पर्व के साथ मनाया जाता है।

सामुदायिक एकता और सहयोग का प्रतीक

नृत्य के साथ युवा पुरुष और महिलाएं गांव-गांव जाकर घरमुखियों से उपहार मांगते हैं, जिससे सामुदायिक संपर्क और एकजुटता मजबूत होती है। यह परंपरा सांस्कृतिक ज्ञान के पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरण का माध्यम भी बनती है।

त्रिपुरा के अन्य पारंपरिक नृत्य रूप

होजागिरी नृत्य

होजागिरी, रींग समुदाय का सबसे प्रमुख नृत्य है। इस नृत्य में युवा लड़कियां अपने सिर पर दीपक व अन्य वस्तुएं रखकर तथा मिट्टी के घड़ों पर संतुलन बनाते हुए नृत्य करती हैं।

गारिया नृत्य

गारिया नृत्य त्रिपुरा की एक अन्य प्रसिद्ध जनजातीय परंपरा है, जिसे गारिया पूजा के दौरान, फसल बोवाई की कामना करते हुए प्रस्तुत किया जाता है।

सांस्कृतिक संरक्षण की चुनौतियाँ

आधुनिकीकरण का दुष्प्रभाव

तेजी से हो रहे शहरीकरण और आधुनिक जीवनशैली के चलते पारंपरिक नृत्य और सांस्कृतिक विरासतों का संरक्षण एक बड़ी चुनौती बन गया है। युवा वर्ग में लोक कलाओं के प्रति रुचि घट रही है।

संरक्षण प्रयास

सरकारी और गैर-सरकारी संगठन सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए प्रयासरत हैं। वे त्योहारों, कार्यशालाओं और जागरूकता अभियानों के माध्यम से पारंपरिक कलाओं के प्रचार-प्रसार में सहायता कर रहे हैं।

पूर्वोत्तर भारत में जनजातीय नृत्य परंपरा

क्षेत्रीय विविधता

पूर्वोत्तर भारत में विभिन्न जनजातियों की विशिष्ट नृत्य परंपराएँ हैं, जो सांस्कृतिक पहचान और जीवन मूल्य को अभिव्यक्त करती हैं।

कृषि प्रेरित उत्सव

अधिकांश जनजातीय नृत्य कृषि चक्र – बुवाई, फसल की देखभाल और कटाई – से जुड़े हैं। ये नृत्य समुदायों के प्रकृति से गहन जुड़ाव को दर्शाते हैं।

यूनेस्को और भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत

मान्यता प्राप्त परंपराएँ

भारत की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के अंतर्गत अब तक 15 तत्व यूनेस्को की सूची में शामिल किए जा चुके हैं। हाल ही में गुजरात के गरबा नृत्य को भी इस सूची में शामिल किया गया है।

संरक्षण की आवश्यकता

ममिता जैसे जनजातीय नृत्य भारत की सांस्कृतिक विविधता और परंपरा में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये केवल नृत्य नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना और पारंपरिक ज्ञान के संवाहक हैं।

त्रिपुरा की अन्य प्रमुख जनजातियाँ

चकमा जनजाति

त्रिपुरा की चकमा जनजाति 'बिजु नृत्य' के लिए जानी जाती है, जो चैत्र संक्रांति पर प्रस्तुत किया जाता है।

जमातिया जनजाति

जमातिया जनजाति गारिया नृत्य और अन्य पारंपरिक कलाओं में सक्रिय भागीदारी रखती है।

सामाजिक और आर्थिक संदर्भ

आजीविका और कृषि व्यवस्था

रींग समुदाय की आजीविका मुख्यतः कृषि आधारित है और वे स्थानांतरण आधारित खेती ('झूम खेती') करते हैं। उनका आर्थिक चक्र कृषि मौसम पर आधारित होता है।

सामाजिक संरचना

समुदाय में दो प्रमुख वंश – 'मेस्का' और 'मोलसोई' पाए जाते हैं। उनके पास एक स्वशासित पंचायतनुमा प्रणाली होती है।

🔍 परीक्षा की दृष्टि से क्यों है यह समाचार महत्वपूर्ण?

कला एवं संस्कृति (GS पेपर 1)

ममिता नृत्य UPSC की कला और संस्कृति श्रेणी में पूछा जा सकता है। सरकारी परीक्षाओं में पारंपरिक और लोकनृत्य से जुड़े प्रश्न सामान्य हैं।

भारतीय समाज

रींग समुदाय की संरचना, आस्था, और उनकी सामाजिक जीवनशैली भारतीय समाज को विविधता के साथ समझने में सहायक है।

पूर्वोत्तर भूगोल

पूर्वोत्तर राज्यों की संस्कृति, जनजातियां, भाषाएं और त्योहार Static GK तथा भूगोल के प्रश्नपत्रों के लिए उपयोगी हैं।

मानव विज्ञान (Anthropology वैकल्पिक)

जनजातीय धर्म, सांस्कृतिक व्यवहार, सामाजिक संरचना आदि विषयों की जानकारी अनिवार्य है।

करेंट अफेयर्स

PVTG समुदायों की स्थिति व सांस्कृतिक संरक्षण से संबन्धित मुद्दे UPSC व अन्य परीक्षाओं में समसामयिक प्रसंगों के रूप में पूछे जा सकते हैं।

✅ मुख्य तथ्य जो याद रखने योग्य हैं:

ममिता नृत्य: रींग महिलाएं फसल कटाई के बाद धन्यवाद रूप में प्रस्तुत करती हैं

सामुदायिक पहचान: रींग जनजाति (ब्रू), त्रिपुरा की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति

भाषा: कोकबोरोक (कौबरु बोली), तिब्बती-बर्मी भाषा परिवार

धार्मिक आस्था: मैलुमा और खुलुमा देवियों की पूजा

समय: अक्टूबर–नवंबर, फसल कटाई के समय

PVTG मान्यता: रींग समुदाय विशेष रूप से संवेदनशील जनजातीय समूह (PVTG) में

अन्य नृत्य: होजागिरी (रींग समुदाय द्वारा किया जाने वाला अद्वितीय संतुलन आधारित नृत्य)

अन्य प्रमुख जनजातियाँ: चकमा (बिजु नृत्य), जमातिया (गारिया नृत्य)

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