UPSC करेंट अफेयर्स 17 जून 2025: फ्लाई ऐश से कृषि में क्रांति – पैदावार में 30% तक वृद्धि | अथर्व एग्जामवाइज

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प्रिय UPSC अभ्यर्थियों, आज के करेंट अफेयर्स में एक क्रांतिकारी विकास शामिल है, जो न केवल पर्यावरण बल्कि कृषि के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान (IISS), भोपाल के नेतृत्व में चल रहे शोध से पता चला है कि थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाली फ्लाई ऐश केवल पर्यावरणीय बोझ नहीं है, बल्कि कृषि उत्पादकता बढ़ाने का एक प्रभावी साधन भी बन सकती है।

फ्लाई ऐश: औद्योगिक कचरे से कृषि क्रांति तक

एनटीपीसी की महत्वाकांक्षी 10 वर्षीय परियोजना

नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (NTPC) ने 2021 में कृषि में फ्लाई ऐश के उपयोग पर एक दशक लंबा वैज्ञानिक अध्ययन शुरू किया। यह शोध भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान के नेतृत्व में देश के पांच प्रमुख केंद्रों – भोपाल, झांसी, भुवनेश्वर, दिल्ली और मोहनपुर (पश्चिम बंगाल) – में किया जा रहा है।

मिट्टी की विविधता और सकारात्मक परिणाम

अध्ययन में फ्लाई ऐश का विभिन्न प्रकार की मिट्टी पर प्रभाव देखा गया:

भोपाल: काली चिकनी मिट्टी (वर्टिसोल)

झांसी: दोमट मिट्टी

भुवनेश्वर: लाल-पीली लैटराइट मिट्टी

दिल्ली और मोहनपुर: जलोढ़ मिट्टी

विशेष रूप से जलोढ़ मिट्टी वाले क्षेत्रों में धान की पैदावार में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।

फ्लाई ऐश में पोषक तत्व: प्रकृति का खजाना

16 आवश्यक पोषक तत्वों की उपस्थिति

फ्लाई ऐश में पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक कुल 16 पोषक तत्व पाए जाते हैं:

मुख्य पोषक तत्व:

फास्फोरस (P)

कैल्शियम (Ca)

पोटैशियम (K)

मैग्नीशियम (Mg)

सल्फर (S)

सूक्ष्म पोषक तत्व:

आयरन (Fe)

मैंगनीज (Mn)

जिंक (Zn)

कॉपर (Cu)

बोरॉन (B)

कोबाल्ट (Co)

मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार

फ्लाई ऐश मिट्टी के भौतिक और रासायनिक गुणों में महत्वपूर्ण सुधार करती है:

pH संतुलन: अम्लीय मिट्टी के लिए प्राकृतिक बफर का कार्य करती है

जल धारण क्षमता: मिट्टी की जल धारण क्षमता बढ़ाती है

सिल्ट सामग्री: विशेष रूप से काली चिकनी मिट्टी में सिल्ट की मात्रा बढ़ाती है

छिद्रता (Porosity): मिट्टी की छिद्रता में सुधार

शोध परिणाम: आंकड़े बोलते हैं

पैदावार में 30% तक वृद्धि

एनटीपीसी के पूर्व डीजीएम एस.एम. चौबे के अनुसार, उत्तर प्रदेश के ऊंचाहार प्लांट के पास दो वर्षों तक किए गए प्रयोगों में गेहूं और धान की पैदावार में 30% तक की वृद्धि दर्ज की गई। यह वृद्धि विभिन्न फसलों में देखी गई:

गेहूं (Triticum aestivum): उत्पादन में 25% तक वृद्धि

धान: जलोढ़ मिट्टी में सर्वाधिक लाभ

दलहन फसलें: चना में उल्लेखनीय सुधार

सब्जियां: टमाटर, आलू, प्याज में वृद्धि

किसानों को आर्थिक लाभ

फ्लाई ऐश के उपयोग से किसानों को निम्नलिखित आर्थिक लाभ हुए हैं:

रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता में 15–20% की कमी

लागत में उल्लेखनीय कमी

प्रति एकड़ अधिक लाभ

मिट्टी की दीर्घकालिक उर्वरता में सुधार

भारत में फ्लाई ऐश की स्थिति

उत्पादन और चुनौतियां

भारत में वर्तमान में प्रतिवर्ष लगभग 226 मिलियन टन फ्लाई ऐश का उत्पादन होता है, जो निरंतर बढ़ रहा है और 2022–23 तक 500 मिलियन टन तक पहुंच गया है। मुख्य चुनौतियां हैं:

विशाल मात्रा में निपटान की समस्या

पर्यावरणीय प्रदूषण का खतरा

भूमि और जल संसाधनों पर नकारात्मक प्रभाव

उचित उपयोग तकनीक की कमी

CSIR-AMPRI भोपाल का योगदान

CSIR-एडवांस्ड मटेरियल प्रोसेस रिसर्च इंस्टीट्यूट (AMPRI), भोपाल में 1992 से फ्लाई ऐश के कृषि उपयोग पर अनुसंधान हो रहा है। संस्थान ने देश के विभिन्न थर्मल पावर स्टेशनों पर सफल प्रदर्शन किया है।

फ्लाई ऐश सॉयल अमेंडमेंट टेक्नोलॉजी (FASAT)

CSIR-CIMFR की पेटेंट तकनीक

CSIR-सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ माइनिंग एंड फ्यूल रिसर्च (CIMFR) ने फ्लाई ऐश सॉयल अमेंडमेंट टेक्नोलॉजी (FASAT) विकसित की है, जो पेटेंट प्राप्त है। इस तकनीक की विशेषताएं:

फ्लाई ऐश: 80–95% भारानुपात

फॉस्फेटिक रॉक: 3–10% भारानुपात

पोटैशियम क्लोराइड: 0.5–4.0% भारानुपात

यूरिया: 0.5–5.0% भारानुपात

ह्यूमिक एसिड: 0.3–1.0% भारानुपात

सामाजिक लाभ

FASAT तकनीक से प्राप्त मुख्य लाभ:

फसल उत्पादन में 15–60% वृद्धि

मिट्टी के भौतिक-रासायनिक गुणों में सुधार

फसल की पोषण गुणवत्ता में वृद्धि

कीट प्रकोप में कमी

4–5 वर्षों तक अवशिष्ट प्रभाव

विभिन्न प्रकार की मिट्टी पर फ्लाई ऐश का प्रभाव

काली चिकनी मिट्टी (वर्टिसोल)

भोपाल में चल रहे शोध के अनुसार, काली चिकनी मिट्टी की मुख्य समस्याएं हैं:

सूखने पर सिकुड़ना और गीली होने पर फूलना

कम जल पारगम्यता

कठोर संरचना

फ्लाई ऐश मिलाने से:

सिल्ट सामग्री में वृद्धि

मिट्टी की संरचना में सुधार

जल धारण क्षमता में संतुलन

बलुई मिट्टी में सुधार

बलुई मिट्टी में फ्लाई ऐश के लाभ:

जल धारण क्षमता में वृद्धि: 0.38 से 0.53 सेमी/सेमी तक

पोषक तत्वों की हानि में कमी

मिट्टी की संरचना में स्थिरता

भविष्य की संभावनाएं और चुनौतियां

नए अनुप्रयोग क्षेत्र

भविष्य में फ्लाई ऐश के उपयोग:

कृषि क्षेत्र में:

रेशेदार फसलों के लिए विशेष उपयोग

सजावटी पौधों की खेती

बागवानी फसलों में व्यापक प्रयोग

जैविक खेती में सहायक

पर्यावरणीय लाभ:

डंपिंग साइटों की समस्या का समाधान

भूजल प्रदूषण में कमी

कार्बन फुटप्रिंट में कमी

सतत कृषि का विकास

सावधानियां और सीमाएं

फ्लाई ऐश के उपयोग में आवश्यक सावधानियां:

मात्रा नियंत्रण: अत्यधिक उपयोग (40–50%) हानिकारक हो सकता है

भारी धातुओं की निगरानी: नियमित परीक्षण आवश्यक

मिट्टी परीक्षण: स्थानीय मिट्टी के अनुसार उपयोग

दीर्घकालिक प्रभाव: निरंतर अध्ययन की आवश्यकता

वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत

अंतरराष्ट्रीय तुलना

फ्लाई ऐश उत्पादन में भारत विश्व में चौथे स्थान पर है:

रूस

अमेरिका

चीन

भारत

एनटीपीसी की पहलें

एनटीपीसी की प्रमुख पहलें:

मध्य पूर्व और अन्य क्षेत्रों में फ्लाई ऐश का निर्यात

रेलवे नेटवर्क के माध्यम से परिवहन

सीमेंट निर्माताओं के साथ सहयोग

प्रति वर्ष 60 मिलियन फ्लाई ऐश ईंटों का उत्पादन

आपकी परीक्षा की तैयारी के लिए क्यों महत्वपूर्ण है

UPSC Environment और Ecology के लिए महत्व

प्रत्यक्ष परीक्षा संबंधी पहलू:

पर्यावरणीय प्रदूषण और समाधान: फ्लाई ऐश औद्योगिक अपशिष्ट प्रबंधन का उत्कृष्ट उदाहरण है, जो सर्कुलर इकॉनमी के सिद्धांत को दर्शाता है।

सतत कृषि: यह विषय सतत विकास लक्ष्यों (विशेषकर SDG 2, 6, 12, 15) से सीधे जुड़ा है।

मृदा विज्ञान: विभिन्न प्रकार की मिट्टी (वर्टिसोल, जलोढ़, लैटराइट) और उनके गुण UPSC भूगोल का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

करेंट अफेयर्स और नीति निहितार्थ:

राष्ट्रीय संस्थानों की भूमिका: IISS भोपाल, NTPC, और CSIR संस्थानों का योगदान

अनुसंधान और विकास: सरकारी नीतियों में R&D का महत्व

किसान कल्याण: कृषि लागत में कमी और उत्पादकता में वृद्धि

निबंध लेखन के लिए उपयोगी:

"Waste to Wealth" की अवधारणा

पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के बीच संतुलन

वैज्ञानिक अनुसंधान का व्यावहारिक अनुप्रयोग

भारत की तकनीकी क्षमता और नवाचार

Mains प्रश्नों के लिए तैयारी:

यह विषय निम्नलिखित प्रकार के प्रश्नों में सहायक है:

"भारत में औद्योगिक अपशिष्ट प्रबंधन की चुनौतियां और समाधान"

"कृषि उत्पादकता बढ़ाने में वैज्ञानिक नवाचार की भूमिका"

"पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास में तालमेल"

Prelims के लिए तथ्य:

भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान की स्थापना: 1988, भोपाल

एनटीपीसी का फुल फॉर्म और स्थिति

विभिन्न मिट्टी के प्रकार और वितरण

फ्लाई ऐश में पाए जाने वाले पोषक तत्व