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हिमाचल प्रदेश की प्रसिद्ध कांगड़ा चित्रकला के माध्यम से जानिए प्रकृति, प्रेम और भक्ति से जुड़ा यह कला रूप। प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण Daily GK अपडेट | Atharva Examwise

कांगड़ा चित्रकला: भारतीय कला के हृदय में प्रकृति, प्रेम और सौंदर्य

भूमिका

कांगड़ा चित्रकला, भारतीय लघुचित्र कला की एक प्रतिष्ठित शैली है, जो अपनी काव्यात्मक सुंदरता, प्राकृतिक अभिव्यक्ति और प्रेम-भक्ति जैसे विषयों के लिए प्रसिद्ध है। 18वीं सदी में हिमाचल प्रदेश में उत्पन्न यह कला रूप, "मार्च 2025 की समसामयिक घटनाओं" और UPSC, SSC, बैंकिंग आदि प्रतियोगी परीक्षाओं के “Daily GK Update” खंड में अक्सर पूछा जाने वाला विषय है। जानिए क्यों कांगड़ा चित्रकला एक सांस्कृतिक धरोहर है और "Competitive Exam News" में इसका विशेष स्थान है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और विकास

उत्पत्ति:
कांगड़ा चित्रकला 18वीं शताब्दी के मध्य में बशोली और गुलेर शैलियों से विकसित हुई, जब मुग़ल कलाकार हिमालय की तराई में आकर बस गए। इसे विशेष रूप से राजा संसार चंद (राज्यकाल: 1776–1824) के संरक्षण में बढ़ावा मिला।

केंद्र:
मुख्य केंद्र कांगड़ा, गुलेर, बशोली, चंबा, नूरपुर रहे; बाद में यह मंडी, सुकेत, कुल्लू, अर्की, नालागढ़ और टिहरी गढ़वाल तक फैल गई।

स्वर्ण युग:
राजा संसार चंद के शासनकाल में इस कला का स्वर्ण युग आया। उस समय के प्रसिद्ध कलाकार जैसे नैणसुख और मनाकु ने इस शैली को नई ऊंचाई दी और उनके चित्र आज अंतरराष्ट्रीय संग्रहालयों में प्रदर्शित हैं।

कांगड़ा चित्रकला की विशेषताएं

मुख्य विषय:
प्रकृति, राधा-कृष्ण का प्रेम, भक्ति, और पौराणिक कहानियाँ (भागवत पुराण, गीत गोविंद, बारहमासा आदि) इसके मुख्य विषय रहे।

प्राकृतिक सौंदर्य:
हरे-भरे वृक्ष, पहाड़, नदियाँ, फूल-पत्तियाँ और पक्षी बड़ी बारीकी से चित्रित किए जाते हैं, जो मानवीय भावनाओं की पृष्ठभूमि बनाते हैं।

नारी सौंदर्य:
नारी आकृतियाँ अत्यंत सौम्य, कोमल, बड़ी आँखों और सुंदर मुद्रा में दिखाई जाती हैं — भारतीय सौंदर्य की आदर्श अभिव्यक्ति।

रंग और तकनीक:
प्राकृतिक रंगों (खनिजों और वनस्पतियों से निकाले गए) का उपयोग किया जाता था, जिससे चित्रों में एक ठंडक और चमक पैदा होती थी। ब्रश पक्षियों के पंखों से बनाए जाते थे।

सूक्ष्मता और निपुणता:
इन चित्रों की सबसे बड़ी खासियत इनकी सूक्ष्म रेखाएं, महीन विवरण और रंगों का संतुलित संयोजन है।

निर्माण सामग्री और पद्धति

प्राकृतिक रंग:
नीला – इंडिगो,
लाल – लाख,
काला – काजल आदि।

ब्रश:
स्थानीय पक्षियों जैसे टर्टल डव के पंखों से बनाए जाते थे।

कागज़:
देवदार पेड़ के जैविक अपशिष्ट से बने हाथ से निर्मित कागज़ का उपयोग होता था।

सोना:
चित्रों को सजाने के लिए सोने का भी उपयोग किया जाता था।

मुख्य बिंदु: कांगड़ा चित्रकला एक नजर में

18वीं शताब्दी में हिमाचल प्रदेश (विशेषकर कांगड़ा और गुलेर) में विकसित हुई।

राजा संसार चंद के संरक्षण में इसका स्वर्ण काल आया।

विषय: प्रकृति, प्रेम (राधा-कृष्ण), पौराणिक कथाएं, नारी सौंदर्य।

तकनीक: प्राकृतिक रंग, हाथ से बना कागज, पक्षी-पंख ब्रश।

केंद्र: कांगड़ा, चंबा, नूरपुर, मंडी, कुल्लू आदि।

2012 में Geographical Indication (GI) दर्जा प्राप्त।

कोमल, स्वाभाविक और सूक्ष्म शैली इसकी पहचान है।

अंतरराष्ट्रीय संग्रहालयों में प्रदर्शित और सराही जाती है।

संरक्षण और वर्तमान महत्व

कांगड़ा चित्रकला को GI एक्ट के तहत संरक्षित किया गया है। हिमाचल प्रदेश की स्कूलों व कला संस्थानों में इसे सिखाया जा रहा है। यह कला आज भी प्रेरणा का स्रोत है और कई बार इसे राजनयिक उपहार के रूप में भी प्रस्तुत किया जाता है।

प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?

UPSC, SSC, बैंकिंग आदि परीक्षाओं में कला और संस्कृति अनुभाग के अंतर्गत कांगड़ा चित्रकला एक प्रमुख विषय है।

इससे संबंधित प्रश्न इसके उद्भव, विषय-वस्तु, तकनीक, संरक्षक इत्यादि से पूछे जा सकते हैं।

यह भारत की सांस्कृतिक विविधता और कलात्मक उपलब्धियों को समझने में सहायक है।

ऐसी और महत्वपूर्ण जानकारी के लिए जुड़े रहें Atharva Examwise के “Daily GK Update” और “Current Affairs March 2025” से।