भारत के संघवाद की पुनर्कल्पना: परिसीमन, विविधता और केंद्र-राज्य संबंधों का भविष्य

परिचय: भारत में संघवाद क्यों है महत्वपूर्ण

भारत का संघीय ढांचा उसकी लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव है, जो केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति संतुलन बनाए रखता है। संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत शक्तियों का विभाजन संघ, राज्य और समवर्ती सूचियों में किया गया है149। व्यवहार में, संघवाद राजनीतिक समीकरणों, संसाधन-वितरण और बदलती शासन आवश्यकताओं से आकार लेता है-यही कारण है कि यह विषय प्रतियोगी परीक्षा ब्लॉग, UPSC तैयारी टिप्स और SSC रणनीति में बार-बार देखा जाता है।

संघवाद पर बहस: प्रमुख मुद्दे और वर्तमान चुनौतियाँ

1. केंद्रीकरण बनाम राज्य स्वायत्तता

हाल के वर्षों में केंद्र सरकार ने वित्तीय तंत्र, जांच एजेंसियों और एकतरफा नीति निर्माण के माध्यम से राज्यों पर अधिक नियंत्रण स्थापित किया है।

दक्षिणी राज्य, जो आर्थिक और विकास के क्षेत्र में अग्रणी हैं, अक्सर अधिक जनसंख्या वाले उत्तरी राज्यों की तुलना में कम वित्तीय वितरण पाते हैं।

एक भाषा या नीति मॉडल को बढ़ावा देने के प्रयासों का कई राज्यों द्वारा विरोध हुआ है, जो अपनी पहचान बनाए रखना चाहते हैं।

2. परिसीमन की दुविधा

परिसीमन लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की सीमाओं को जनसंख्या के आधार पर पुनर्निर्धारित करने की प्रक्रिया है।

42वें संविधान संशोधन (1976) के बाद से सीट आवंटन को स्थगित रखा गया था ताकि जनसंख्या नियंत्रण करने वाले राज्यों को दंडित न किया जाए-यह स्थगन 2026 में समाप्त हो सकता है।

उत्तर भारत के राज्य (UP, बिहार, MP, राजस्थान) अधिक जनसंख्या वृद्धि के कारण अधिक सीटें पा सकते हैं, जबकि दक्षिणी और कुछ पश्चिमी राज्य बेहतर शासन और विकास के बावजूद प्रतिनिधित्व खो सकते हैं।

यह सवाल उठता है: क्या जनसंख्या नियंत्रण करने वाले राज्यों को दंडित किया जाना चाहिए और अधिक जनसंख्या वाले राज्यों को इनाम मिलना चाहिए?

3. पहचान की राजनीति और बहुलवाद

भाजपा जैसे राष्ट्रीय दलों का दक्षिण और पूर्वी राज्यों में विस्तार, सांस्कृतिक, भाषाई और राजनीतिक विविधता पर बहस को तेज कर रहा है।

तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों की क्षेत्रीय पार्टियाँ बहुलवाद की रक्षा करती हैं और एकरूपता के प्रयासों का विरोध करती हैं, जिससे भारत के विविध लोकतंत्र की आत्मा जीवित रहती है।

द हिंदू हडल 2025: संघवाद की पुनर्कल्पना

बेंगलुरु में 9-10 मई 2025 को "More than a Sum of Parts: Reimagining India’s Federalism" विषय पर वरिष्ठ मंत्रियों की पैनल चर्चा होगी। इसमें परिसीमन, संसाधन-वितरण और एकता-विविधता के संतुलन जैसे मुद्दों पर बहस होगी।

समाधान और आगे की राह

संतुलित परिसीमन: केवल जनसंख्या ही नहीं, राज्यों के आर्थिक योगदान, शासन की गुणवत्ता और जनसंख्या नियंत्रण की सफलता को भी ध्यान में रखा जाए।

अंतर-राज्य परिषद को पुनर्जीवित करें: केंद्र-राज्य संवाद के लिए एक मजबूत, स्वतंत्र मंच विवादों के समाधान और सहकारी संघवाद को बढ़ावा दे सकता है।

विविधता की रक्षा करें: राष्ट्रीय ढांचे में भाषाई, सांस्कृतिक और क्षेत्रीय विविधताओं का सम्मान और संरक्षण करें5

संतुलित वित्तीय संघवाद: संसाधनों का ऐसा वितरण हो जो सिर्फ जनसंख्या नहीं, बल्कि सुशासन और विकास को भी प्रोत्साहित करे।

परीक्षा की तैयारी के लिए मुख्य बिंदु

संवैधानिक ढांचा समझें: सातवीं अनुसूची, अनुच्छेद 81, 82, 170 और संघवाद व परिसीमन से जुड़े संशोधन।

समसामयिक घटनाओं को उत्तर में जोड़ें: परिसीमन बहस, GST परिषद, नीति आयोग जैसे उदाहरणों का उपयोग करें।

चुनौतियों और सुधारों को उजागर करें: केंद्रीकरण, वित्तीय संघवाद और सहकारी तंत्र की जरूरत को निबंध/साक्षात्कार में शामिल करें।

उत्तर संरचना का अभ्यास करें: केंद्र-राज्य संबंधों और हालिया प्रवृत्तियों को फ्लोचार्ट में दर्शाएँ, जैसा कि शीर्ष UPSC ब्लॉग में सुझाया जाता है।

क्यों जरूरी है यह जानकारी परीक्षार्थियों के लिए

संघवाद, केंद्र-राज्य संबंध और परिसीमन UPSC, SSC और बैंकिंग परीक्षाओं में बार-बार पूछे जाने वाले विषय हैं।

इन विषयों में महारत आपको स्थैतिक जीके और समसामयिक घटनाओं दोनों में विश्लेषणात्मक उत्तर लिखने में मदद करेगी।

और अपडेट्स के लिए पढ़ते रहें Atharva Examwise blog-प्रतियोगी परीक्षा ब्लॉग का आपका भरोसेमंद स्रोत।

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